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पर्वत और गिलहरी / कन्हैयालाल मत्त

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एक बार पर्वत अभिमानी,
चंट गिलहरी से यों बोला-
'है कोई ऐसा दुनिया में,
जिसने मेरे बल को तोला?

बोझ-भार जंगल का सह ले,
यह तो मेरी छाती है,
तू मुझसे कितनी छोटी है-
इस पर मुझे हँसी आती है!'

हँसती हुई गिलहरी बोली-
'सुन रे, ऊबड़-खाबड़ टीले!
सचमुच जो कि बड़े होते हैं,
बनते इतने नहीं नुकीले।

हिम्मत है, तो कर मुकाबला,
ये बातें बेकार छोड़कर,
हार मान लूँगी मैं तुझसे,
दिखा जरा अखरोट तोड़कर!'