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गुड़िया / कुंवर नारायण
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मेले से लाया हूँ इसको
छोटी सी प्यारी गुड़िया,
बेच रही थी इसे भीड़ में
बैठी नुक्कड़ पर बुढ़िया
मोल-भव करके लया हूँ
ठोक-बजाकर देख लिया,
आँखें खोल मूँद सकती है
वह कहती पिया-पिया।
जड़ी सितारों से है इसकी
चुनरी लाल रंग वाली,
बड़ी भली हैं इसकी आँखें
मतवाली काली-काली।
ऊपर से है बड़ी सलोनी
अंदर गुदड़ी है तो क्या?
ओ गुड़िया तू इस पल मेरे
शिशुमन पर विजयी माया।
रखूँगा मैं तूझे खिलौने की
अपनी अलमारी में,
कागज़ के फूलों की नन्हीं
रंगारंग फूलवारी में।
नए-नए कपड़े-गहनों से
तुझको राज़ सजाऊँगा,
खेल-खिलौनों की दुनिया में
तुझको परी बनाऊँगा।