केशों में उन्मादी गंगा
सीने से चिपकाए सर्प
निबाहती भूत-पिशाच तक
करती नित्य हलाहल पान
फिर भी अमृत मुस्कान
तू स्त्री है कि शिव
सावधान अगर हो शिव
स्त्री तुम
मत देना वरदान
भस्मासुरों को।
केशों में उन्मादी गंगा
सीने से चिपकाए सर्प
निबाहती भूत-पिशाच तक
करती नित्य हलाहल पान
फिर भी अमृत मुस्कान
तू स्त्री है कि शिव
सावधान अगर हो शिव
स्त्री तुम
मत देना वरदान
भस्मासुरों को।