भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मत देना वरदान भस्मासुरों को / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:20, 28 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |अनुवादक= |संग्रह=ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
केशों में उन्मादी गंगा
सीने से चिपकाए सर्प
निबाहती भूत-पिशाच तक
करती नित्य हलाहल पान
फिर भी अमृत मुस्कान
तू स्त्री है कि शिव
सावधान अगर हो शिव
स्त्री तुम
मत देना वरदान
भस्मासुरों को।