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माँ के बिना / रेखा चमोली

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गलती मेरी ही थी
हर बार कि तरह इस बार भी भूल गया
इन्तजार कर रही होगी माँ
क्या करूं
ज्यों ज्यों ढलती है शाम
खेल में और मजा आने लगता है
छज्जे पर दिखी जब उसकी धुंधली आकृति
तब आया ध्यान
बताया था उसने
हो जाए जरा सी देर मुझे तो
जाने क्या-क्या बुरी बातें उसके मन में आने लगती हैं

अबोली रही माँ पूरी शाम
खाना भी रहा बेस्वाद
सोते समय
मुझे सोया जान
मेरी ओर करवट ले
मेरी ढकेण ठीक करती है
मेरे माथे पर फिराती है हाथ
मैं भी नींद का बहाना कर
अपनी बाँह उसकी कमर में लपेट लेता हूँ
माँ के बिना नींद कहाँ आती है।