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सहेलियां / रेखा चमोली
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सामने से आती दिखती वह
चुस्त जींस कुरते में स्टॉल डाले
दूर से ही किसी को देखकर मुस्कुराती है
पास आकर कस कर गले लगाती है
हाथ से छूटने को होते हैं
जरूरतों से भरे भारी थैले
एक जोरदार हॅसी से महक जाती है सडक
चौंक जाती हैं कई जोडी ऑखें
इनकी परवाह किए बिना
सडक किनारे खडी होकर बातें करती हैं दोनांे
पूछती हैं एक दूसरे का सुख-दुख
ताने देती हैं फोन न करने के
एक दूसरे का खालीपन, बेबसी सब भांप जाती हैं
हाथ थामे-थामे
और फिर चल देती हैं
अपनी-अपनी दिशा
सडक की थकान इस बीच कुछ घट जाती है।