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जीवन तत्व की तलाश / नीरजा हेमेन्द्र
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ऊँची बिल्ड़िग के पीछे
पुनः उगने लगा है सूर्य
शनै... शनै... शनै... प्रकाश फैलेगा
गगनचुम्बी भवनों के शिखर नहा उठेंगे
सुनहरी किरणों से
सूरज उदास है...
उदास है धूप भी...
सहम कर ठिठक गयी है खिड़की के ऊपर
शहर के नीम-स्याह गलियारे
सीलन और दुर्गन्ध से भरने लगे हैं
वसंत भी तो लौट गया था
न जाने क्या सोचकर
शहर के मुहाने से
कमरे की खिड़की खुली रखी है मैंने
शाम होने तक
धूप समेटने लगी स्वंय को...
अँधेरा होने से पूर्व
धूप, हवा और प्रकाश का
अस्तित्व में आना आवश्यक था
मैंने पढ़ा था कि जीवनतत्व के लिए
ये आवश्यक हैं
अँधेरे कमरे में जीवन को ढूँढना व्यर्थ है
क्यों न मैं धूप, हवा और
प्रकाश की तलाश पहले करूँ
शहर के बाहर वसंत का पता पूछूँ...