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छंद 7 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज
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किरीट सवैया
(भ्रमरावली के मुख से वसंत-महिमा कथन)
सौंधे समीरन कौ सरदार, मलिंदन कौ मनसा-फल-दायक।
किंसुक-जालन कौ कलपद्रुम, मानिनी-बालन हूँ कौ मनायक॥
कंत अनंत, अनंत कलीन कौ, दीनन के मन कौ सुख-दायक।
साँचौ मनोभव-राज कौ साज, सु आवत आज इतै ऋतु-नायक॥
भावार्थ: सुगंधित समीरों के अग्रगण्य, भ्रमरों के वांछित फल को देनेवाले, पलाश-कुसुमों के लिए कल्पवृक्ष, मानिनी बालाओं के मनानेवाले, अनंत पुष्प-कलिकाओं को विकसित करने वाले, उनके कंत (पति), दीन मनुष्यों के मन को सुखदाई अर्थात् अन्न-समृद्धि से राव-रंक समस्त प्रजा-परिपूर्णकारक और महाराज मदन के सच्चे सहायक साज, ऐसे ऋतुओं के राजा आज इस प्रांत में आगमन करते हैं।