भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छंद 8 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:54, 29 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज |अनुवादक= |संग्रह=शृंगारलति...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(वसंतागम सुन दर्शनार्थ उत्सुक होने का वर्णन)
सुनत सलौनी बात यह, तन-मन सबै भुलाइ।
ऋतु-पति के दरसन हितै, बाढ्यौ उर मैं चाइ॥
भावार्थ: ऐसा प्रिय संवाद सुनकर तन-मन की सुधि भूल महाराज ‘वसंत’ के दर्शन की लालसा बढ़ी।