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तितली / योगेन्द्र दत्त शर्मा
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बैठ इस डाल पे
उस डाल को
तकती तितली!
खुशबू इस छोर से
हर ओर छिड़कती तितली!
पंख कोमल हैं, मगर
रंग-बिरंगे भी बहुत,
जिनको फैला के
परी बन के
थिरकती तितली!
चूसती रहती है
रस फूल का
रहती है मगन,
उड़ती रहती है लगातार
न थकती तितली!
मैं पकड़ने के लिए
हाथ बढ़ाता हूँ मगर,
दूर से ही
मुझे बहका के
खिसकती तितली!
कभी फूलों पे
कभी घास पे
शाखों पे कभी,
एक फिरकनी की तरह
खूब फिरकती तितली!
मेरी इच्छा है कि
मैं छू लूँ
उसे प्यार करूँ,
क्या मेरे पास
तनिक आ
नहीं सकती तितली!