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जाड़ा दूर भगा! / योगेन्द्र दत्त शर्मा
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अरे बिसंबर
लगा दिसंबर
सिलगा ले सिगड़ी,
सर्दी आई
बिना रजाई
हालत है बिगड़ी!
दाँत बज रहे
राम भज रहे
पड़ने लगी ठिरन,
सर्दी से डर
किरणें लेकर
सूरज हुआ हिरन!
धूप सुनहली
अभी न निकली
छाया है कुहरा,
सिकुड़-सिकुड़कर
ठिठुर-ठिठुरकर
यों मत हो दुहरा!
दिखा न सुस्ती
ला कुछ चुस्ती
फुर्ती नई जगा,
गरम चाय का
उड़ा जायका
जाड़ा दूर भगा!