छंद 12 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज
मत्तगयंद सवैया
(महाराज ऋतुराज के सम्मानार्थ तैयारियों का वर्णन)
बंदनवार बँधे सब कैं, सब फूल की मालन छाजि रहे हैं।
मैनका गाइ रहीं सब कैं, सुर-संकुल ह्वै सब राजि रहे हैं॥
फूल सबै बरसैं ‘द्विजदेव’, सबै सुखसाज कों साजि रहे हैं।
यौं ऋतुराज के आगम मैं, अमरावती कौं तरु लाजि रहे हैं॥
भावार्थ: वृक्षों पर जो नवीन पत्रावलियाँ हैं, सो मानो बंदनवार हैं और जो पुष्पों की श्रेणियाँ हैं, सो उनपर पुष्पमालाएँ बाँधी गई हैं। मैनका सब पर गान कर रही हैं और सुरों से सब व्याप्त हो रहे हैं। सब वृक्ष पुष्पों की वर्षा करते हैं और वनदेवता तथा पक्षिगण अनेक सुख-सामग्री सुसज्जित कर रहे हैं, ऋतुराज के आगमन में इस वन के वृक्ष इस भाँति कि सज-धज से अमरावती को लज्जित कर रहे हैं अर्थात् स्वर्ग के सुख-समूह में एक ‘मेनका’ नामक अप्सरा है और यहाँ प्रतिवृक्ष पर अनेक मैनका (मैना) गान करतीं हैं, तो अमरावती को अपने सुषमा-समूह पर लज्जित होना ही पड़ेगा।