भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आया सवेरा / योगेन्द्र दत्त शर्मा
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:05, 29 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योगेन्द्र दत्त शर्मा |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उगा है रोशनी का गोल घेरा,
गगन में फिर उतर आया सवेरा!
उषा की लाल आभा छा रही है
दुबककर रात काली जा रही है,
नया संदेश लेकर सूर्य आया
दिवस की जगमगाहट भा रही है।
किसी भी बात का खतरा नहीं अब,
किरण की मार से भागा अँधेरा!
अँधेरी रात नभ से छँट गई है
हठीली धुंध सारी हट गई है,
उड़े पंछी मगन-मन चहचहाकर
गगन में अब नई पौ फट गई है।
कुहासे ने समेटे पंख अपने,
उजाला डालता हर ओर डेरा!
नई रौनक उषा के साथ आई
नए विश्वास की सौगत आई,
नया उत्साह है ठंडी हवा में
नई आशा अचानक हाथ आई।
गगन के फिर सुनहले शिखर छूने,
चले खग छोड़कर अपना बसेरा!