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छंद 29 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज

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मनहरन घनाक्षरी
(ऋतुराज के आगमन से सहचरों को अतिशय आनंद की प्राप्ति का वर्णन)

पाँखुरी लै साजी सेज सेवती की बेलिन, चमेलिन हूँ सरस बितान-छबि छाई है।
फैल्या चहूँ गहब-गुलाबन कौ गंध धूरि, धूँधरित सुरभि-समीर सुखदाई है॥
चार्यौं ओर कोकिल-चकोर-मोर-सोरन सौं, और छिति-छोरन अनंद अधिकाई है।
आज ‘ऋतुराज’ के समागम के काज होत, धाम-धाम बेलिन कैं आनँद-बधाई है॥

भावार्थ: आज महाराज ऋतुराज के पधारने से, वेलिरूपी नवेलियों के घर आनंद-बधाई हो रही है; कोई तो सेवती की सुकुमार पँखुरी की सेज सज्जित करती है, कोई चमेली के मंडप के सरस वितान तानती है; कोई गुलाब के मकरंद के मिष गुलाब जल छिड़कती है तो कोई पुष्प-पराग से समीर को धूमिल कर संचालित करती है एवं चारों ओर कोकिल, चकोर, मोर के शोर से क्षिति-छोरपर्यंत और ही आनंद छाया हुआ है।