भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छंद 38 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:13, 29 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज |अनुवादक= |संग्रह=शृंगारलति...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दोहा
कबहुँक आपुस मैं रचैं, बहु-बिधि लौकिक-प्रीति।
एक-एक सन कहति हैं, सखि! लखि यह रस-रीति॥
भावार्थ: कभी श्रीराधा-माधव परस्पर लौकिक प्राीति की अनेक रचनाएँ करते हैं, जैसे मध्या-प्रौढ़ादिक की प्रीति के व्यवहार, जिनको देखकर एक सखी दूसरी से बड़े आनंदपूर्वक वर्णन करती है।