भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छंद 53 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:11, 29 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज |अनुवादक= |संग्रह=शृंगारलति...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दोहा
(कवि प्रसन्नता-वर्णन)
अति प्रसन्न गदगद गिरा, मुख सौं कढ़त न बात।
बार-बार बिनती करी, जोरि सुकर-जलजात॥
भावार्थ: और तब मैं हर्षित होकर गद्गद व अधूरे अक्षरों से इस प्रकार भगवती की विनती हाथ जोड़कर करने लगा।