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छंद 55 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज

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सोरठा
(सरस्वती आशीर्वाद-वर्णन)

बैठी चित-हित चाँहि, मम बिनती सुनि भारती।
हिय सिँगार-लतिकाहि, भाँति-अनेक असीस दै॥

भावार्थ: इस प्रकार मेरी विनती सुन और चित्त की चाहना देख भगवती बैठीं तथा अनेक भाँति से ‘शृंगारलतिका’ नामक कवितामय ग्रंथ आशीष देकर दिया।