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छंद 191 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज

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रूप घनाक्षरी
(सुरतांत-वर्णन)

साँवन के दिवस सुहावने सलौने स्याम, जीति रति-समर बिराजे स्यामा-स्याम संग।
‘द्विजदेव’ की सैं तन उघटि चहूँघाँ रह्यौ, चुंबन कौ चहल चुचात चूनरी कौ रंग॥
पीत-पट ताने हरखाने लपटाने लखैं, उँमहि-उँमहि घनस्याम-दामिनी कौ ढंग।
रति-रन-मींजे पैं न मैन-मद छीजे अति, रस-बस भींजे तनकि पुलकि पसीजे अंग॥

भावार्थ: श्रावण के मनोरंजक सलोने तथा सघन-घन-तिमिराच्छादित दिवस में रति-रण में विजय प्राप्त करके श्याम-श्यामा एक साथ शोभायमान हैं। उनके सुंदर शरीर पर चारों ओर चुंबन की चारु उपट और प्रस्वेद के कारण चूनरी के चटक रंग की छाप प्रदर्शित होती है। पीत पट ताने दोनों हर्ष से भरे हुए उमंगयुक्त सघन बादल तथा दामिनी के घूमने और दमकने का दृश्य देख रहे हैं। यद्यपि रति-रण में दोनों विदलित हुए हैं, तथापि उनमें कामोत्साह न्यून नहीं हुआ है, यद्यपि रस में दोनों भीगे हुए हैं, तथापि उनके अंगों में प्रस्वेद किंचित् ही लक्षित होता है।