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मैं देवी नहीं हूँ / रंजना जायसवाल

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मैं देवी नहीं हूँ
फिर भी मेरे नाम के दाएँ
पूरे आन –बान –शान से चमक रहा है यह शब्द
शैक्षिक प्रमाणपत्र लिखने वाले संस्कृति रक्षक
किसी देव की कृपा से
मुझे नाम के दाएँ कोई शब्द पसंद नहीं
बाएँ की तरह ही
बायां उद्घोषणा करता है -स्वतंत्र नहीं है स्त्री
तो दायाँ मनुष्य ही नहीं मानता उसे
हालांकि मेरा नाम मुक्त नहीं है इस दायें –बाएं से
भरसक काटती रहती हूँ इन्हें
क्योंकि मैं देवी नहीं हूँ
‘देवी’सुनते ही सामने दिखने लगती है
एक प्रस्तर –प्रतिमा, जिसकी देह पर
कपड़े भी चढ़ते-उतरते हैं किसी देव की कृपा पर
जो हर हाल में जाड़ा,गर्मी, बरसात में
चेहरे पर शिकन लाए बिना चुप रहती है
जीती –जागती स्त्री को देवी कहने के पीछे
इसके अलावा भी कई वजहें हैं
जैसे पुत्र –रत्न की कामना की जाती है दोनों से ही
‘देने’पर चढ़ती है ‘कढ़ाई’ वरना होती है ‘कटाई –छँटाई’
यानी कि स्त्री के खिलाफ स्त्री की तैयारी
और तो और स्त्री पर ही सवार होती है देवी
तब वह हाथ –पैर पटकती है
गंवारू भाषा बोलती है, गालियाँ बकती है अपढ़ गंवार स्त्री की तरह
तो क्या देवी भी पुरानी स्त्रियों की तरह निरक्षर होती है
जो नहीं बोल सकती संस्कृत के श्लोक!
पर मैं देवी नहीं हूँ
इसलिए मुझे पसंद है समर्थ, स्वतंत्र, सक्षम, अस्तित्व बोधक
सिर्फ स्त्री नाम