भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनुशासन / रंजना जायसवाल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:49, 3 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |अनुवादक= |संग्रह=ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्कूल के विशालकाय फाटक पर
खूँटियों में टंगी रहती हैं
बच्चों के माप की जंजीरें
जिन्हें पहनकर ही
प्रवेश कर सकते हैं वे
कैम्पस में
बच्चे उन्हें उतारते हैं
पहनते हैं
और अपना बचपना
वहीं छोड़कर
बड़े-बुजुर्ग बन जाते हैं
खामोश..गम्भीर
संयमित बुजुर्ग
पर ज्यों ही बजती है छुट्टी की घंटी
वे दौड़ पड़ते हैं फाटक की ओर
उतार-उतार कर फेंकने लगते हैं जंजीरें
जल्दी-जल्दी पहनते हैं
अपना बचपना
और बच्चे बन जाते हैं
हँसते-खिलखिलाते
शरारतें करते
उलटे-सीधे हाथों से
टाटा..बाय...बाय करते
पिंजरे से आजाद पक्षियों से
चहचहाते बच्चे