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बेटे / रंजना जायसवाल

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घर को
कबाड़ की तरह फैलाकर
ढूंढ रहे हैं वे
अपनी जरूरत की कीमती चीजें
और बेच रहे हैं
कबाड़ी के हाथ रद्दी के भाव
एक-एक कर मुश्किल से जुटाई गई
 मेरी पसंदीदा पुस्तकें
और मेरी पांडुलिपियां
जिन्हें प्रकाशित भी नहीं करवा सका मैं
उनके भविष्य की चिंता में