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हुई तुम्हारी जीत प्रिये / सुरजीत मान जलईया सिंह

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तेरी याद बसा रखी है
अब भी हमने गाँव में

एक छुअन पर सब कुछ हारा
हुई तुम्हारी जीत प्रिये
इन होठों पर उन होठों
बहता है संगीत प्रिये
तेरे पद् चिन्हों पर अब भी
खनके पायल पाँव में

सारे बन्धन तोड के तुमने
जकड़ लिया था बाहों में
सरगम के सातों स्वर उठते
हम दोंनों की आहों में
कितना मधुर मिलन था अपना
उस पीपल की छांव में

अपनी अपनी अभिलाषायें
और खेत अभिसार हुये
मौन रहे हम दोनों लेकिन
फिर भी लाखों वार हुये
उसी गन्ध से महक रही है
अब भी मिट्टी गाँव में

तेरी याद बसा रखी है
अब भी हमने गाँव में…