भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक भयभीत दुनिया के नागरिक / गोविन्द कुमार 'गुंजन'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:12, 4 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोविन्द कुमार 'गुंजन' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बरसात की उफनती हुई नदी की बाढ़ में
किसी शव को समझ कर नाव
मैं आया था तुमसे मिलने तुम्हारे गॉंव

अंधेरी रात में
बारिश से लथपथ कीचड़ से सने रास्ते पार करता हुआ
तुम्हारी खिड़की से लटकते हुए किसी सांप को
रस्सी समझ कर मैं चला आया था तुम्हारी ऊंची हवेली में

आज लोग सुनते है तो हँसते है
एक तूफानी नदी को शव की नाव बनाकर पार करना
सांप का मुँह पकड़कर चढ़ जाना किसी छज्जे पर
इन्हें असंभव जान पड़ता है

यह लोग अपनी निजी़ ज़िंदगी में
शव तक से डरते है बहुत

यह लोग एक भयभीत दुनिया के नागरिक हैं
जहां सड़कों पर दुर्घटना का भय फैलाते
देरी को भला बताते हुए इश्तिहार चस्पा है

यह लोग प्रदुषण के डर से
खुलकर सांस लेते हुए भी डरते है
इनकी सांसों में किसी के बसे होने की
सम्भावना नहीं बची

मख्खी, मच्छर, कीटाणु - बैक्टेरिया - डिफ्थेरिया
भू -गरीबी, मार-बेगार, रूस, चीन, बल्गारिया
सैकड़ों बातों से भरे हुए है ये लोग

अपनी जिंदगी में आग लगा कर
यह लोग इंतजार करते है फायर बिग्रेड का
जिसके ठीक वक्त पर न आने की खीझ से
यह लोग भरे हुए भुनभुनाते है

यह लोग इस तरह
मेरा तुम्हारे पास आना किस तरह समझेगे
हमारी बात ये नहीं समझते पर
इनकी बात तो हम समझेगे जरूर

आखिर इसका क्या कसूर,
यह लोग एक डरी हुई दुनिया के नागरिक हैं