भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रोटी जीम्यां पछै / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:48, 9 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ट्रक रै गोळ पहियां सूं
म्हैं काढ़ लेवां
टाबरां सारू रोटी।

कैड़ो सांतरो संजोग है-
पहियो अर रोटी
दोनूं गोळ हुवै।

रोटी जीम्यां पछै
म्हारा टाबर
रमण सारू
मांगै पहियो!