भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मा है बा / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:14, 9 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सारू कोनी नहर रै
पण कीं बाकी कोनी रैवै
जद खूट जावै पाणी
पीळी पड़ जावै फसलां
किरसै रै सागै
मगसो पड़ जावै
नहर रो ई उणियारो।

बिना पाणी
जद कळपै
उणरी गोदी रमता
जळचर
झर-झर रोवै
उणरी आतमा।

सेवट मा है बा
कींकर अणजाण रैवै
टाबरां री पीड़ सूं।