भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मलाल / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:01, 10 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी' |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नै जानौं की काल बुलैलं
ऐतै प्रातःकाल
मुर्गा-मुर्गी मौन आराधै
बकसऽ जीव हलाल।

केकरा सें की विनती करभेॅ
सबके आँखी फलाल
कोय दोस्त नजरी नै आवै
सभे लगै दलाल।

मौज मनैतै काटी-मारी
होलै की कंगाल
एक-एक केॅ बाल खीचतै
पकड़ी-पकड़ी खाल

आँखी कटियो नीन नै आवै
पलकें करै सवाल
कौनेॅ हमरोॅ रक्षा करतै?
यहेॅ आवै मलाल