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तरसी-तरसी रे / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'

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ई आजादी कहर मनावै
सगठें भपसी-भपसी रे
खुद्दन डालै, तार चुराबै
सगठें लकसी-लकसी रे।

गुम्मी साधै, आँख गड़ावै
लार चुवावै लपसी रे
चौक-चौराहा पिल्लू सनमन
देखै तरसी-तरसी रे।

हाथ मलै कोय ताली ठोकै
आँखी देखै बरसी रे
झूठे करै छै खीचा-तानी
भरै छै बोरसी-बोरसी रे।

कसम इरादा झूठे वादा
थरिया लै छै परसी रे
‘रानीपुरी’ द्वेष मिटावऽ
नेक बदरिया बरसी रे।