भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खुजली / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:47, 10 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी' |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कखनू नीचै, कखनू पीछै छी
रही-रही हरदमे सोचै छी
खुजली छेकै कि छेकै दिनाय
कपड़ा-लत्ता गेलै घिनाय।

नीन नै आवै खूब खुजलाय छै
हाथोँ केँ सौसे देह दौड़ाय छै
मनोॅ करै छै दियै जराय।

नीचै छियै तेॅ करै छै सपसप
हाथ पड़ला पर करै छै चपचप
कखमू पेटकुनियाँ, कखनू करबट
सौंसे राती दै छै जगाय।

मन करै गया में दै दौं पिण्ड
फनु नै ऐतै लौटी केॅ जिद
देखबै पत्रा, पंडित बोलाय।

पंडित जी कहोॅ केना भागतै भूत
फनु नैं लौटतै हौ जमदूत
करी दीॅ होम तौं मंतर पढ़ाय।

बोल गे खूजली कत्ते नोचबे
माथोॅ धरी केॅ कत्ते सुखैबे?
‘रानीपुरी’ देबो आगिन लगाय।