भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पयान / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:51, 10 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी' |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ई दुनियाँ केॅ देखोॅ खेलां
संग न जाबै एको धेलां
तेल, फुलेल, हिमानी, कंघी
तन भेलै मांटी रोॅ ढेला।

गुरु छै कोये, कोय रे चेला
नाता-रिस्ता मेले-मेला
चलती घड़ी कोय न अपना
संग छोड़िके जाय अकेला।