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आप बरखा बहार हो जाँना / दीपक शर्मा 'दीप'

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आप बरखा बहार हो जाँना
हाय सोलह-सिंगार हो जाँना!

चाक करते चले गये हो दिल,
इस क़दर धार-दार हो जाँना!

सिर्फ़ मेरे ही, या सभी के ही
बेतरह दिल के पार हो जाँना?

हाय बलखा के जान ले लेना,
आप तो बस कटार हो जाँना

दैर भी तुम हरम-कलीसा भी
हर नफ़स में शुमार हो जाँना!

इक तरफ़ ग़म नवाज़ देती हो,
इक तरफ़ ग़मगुसार हो जाँना!

आज किसका गुमान तोड़ोगी!
आज दिल से फ़रार हो जाँना?