भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत / अश्विनी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:54, 14 जुलाई 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँझ सबेरे बाट जोहै छी
उठी-उठी करौं बिहान गे!
छच्छे खटिया काटै लेॅ दौड़े,
यै जिनगी के निनान गे!
कास फुलैलै धानॅ फुटलै,
फगुआ बितलै, आसो टुटलै,
भरबाभूत-जुआनी कानै,
लै-लै ओकरॅ नाम गे!
धरती रोज सिंगार करै छै,
सरंगोनी बरसै, आग लगै छै
गामॅ दुआरी में हुनके चरचा
सुनी-सुनी सालै छै प्राण गे!