भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ना-रसा / बशर नवाज़

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:41, 14 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बशर नवाज़ |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNazm}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे ख़्वाब अपना अज़ीज़ था
सो मैं नींद से न जगा कभी
मुझे नींद अपनी अज़ीज़ है
कि मैं सर-ज़मीन पे ख़्वाब की
कोई फूल ऐसा खिला सकूँ
कि जो मुश्क बन के महक सके

कोई दीप ऐसा जला सकूँ
जो सितारा बन के दमक सके

मिरा ख़्वाब अब भी है नींद में
मिरी नींद अब भी है मुंतज़िर
कि मैं वो करिश्मा दिखा सकूँ
कहीं फूल कोई खिला सकूँ
कहीं दीप कोई जला सकूँ