भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मत लिखो तुम गीत मेरे नाम / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:41, 4 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=मन गो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मत लिखो तुम गीत मेरे नाम
मैं तुम्हें अपना न कह दूँ प्यार में।

रेत को फिर से बनाओ न नदी
बून्द भर पानी को बीते युग-सदी
हैं बहुत उलझन, बहुत बदनामियाँ
दिल कहीं जो लग गया कचनार में।

एक ठण्डी-सी हवा बहती बहुत
मत खिलाओ मोगरे, महकेगी रुत
ले के उड़ जायेगी खुशबू यह हवा
फिर रहेगी बात क्या दो-चार में।

मन तो मन है, क्या ठिकाना क्या करे
बन्धनों को तोड़, लेता भाँवरे
रेत को सागर बना कर इस तरह
नाव फूलों की न छोड़ो धार में।