भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ग़ैरहाज़िरी / सिनान अन्तून
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:48, 12 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सिनान अन्तून |अनुवादक=मनोज पटेल |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जब
तुम चली जाती हो
मुरझा जाती है यह जग।
मैं
इकट्ठा करता हूँ
उन बादलों को
जो छितरा गए हैं तुम्हारे होठों से।
लटका देता हूँ उन्हें
अपनी स्मृति की दीवार पर
और इन्तज़ार करता हूँ
एक और दिन का।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल