भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमारे लोकतंत्र में / शहंशाह आलम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:48, 16 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहंशाह आलम |संग्रह= }} हमारे लोकतंत्र में वो दस दिशाओं ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमारे लोकतंत्र में वो

दस दिशाओं से आए

इस सभ्य सभ्यता में

मारे गए लोगों की

विधवाओं का विलाप सुनने


जबकि समाप्त हुआ

लोकतंत्र का उत्सव

इस लोक से कब का