भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदमी का चेहरा / कुंवर नारायण

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:13, 16 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुंवर नारायण }} “कुली !” पुकारते ही कोई मेरे अंदर चौंक...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

“कुली !” पुकारते ही

कोई मेरे अंदर चौंका ।

एक आदमी आकर खड़ा हो गया मेरे पास


सामान सिर पर लादे

मेरे स्वाभिमान से दस क़दम आगे

बढ़ने लगा वह

जो कितनी ही यात्राओं में

ढ़ो चुका था मेरा सामान


मैंने उसके चेहरे से उसे

कभी नहीं पहचाना

केवल उस नंबर से जाना

जो उसकी लाल कमीज़ पर टँका होता


आज जब अपना सामान ख़ुद उठाया

एक आदमी का चेहरा याद आया