भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अक़्लमन्दी को ज़ाविया कहना / संजय चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:25, 21 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय चतुर्वेदी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दौर-ए-मुश्किल है रेख़्ता कहना
जुर्म को जुर्म हर दफ़ा कहना
चाँद कहना तो दाग़ भी कहना
जो बुरा है उसे बुरा कहना
जब किताबों में दर्ज हों मानी
एक नन्हीं सी इल्तिजा कहना
हम मुकम्मल नहीं मुसल्सल हैं
अक़्लमन्दी को ज़ाविया कहना
दर्द है तो तज़ाद भी होंगे
चुटकुले में मुहावरा कहना
असद उल्लाह ख़ां नहीं होंगे
तुम तो होगे तुम्ही ज़रा कहना
(1994)