भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
असर-2 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:57, 22 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हंसे नें
हंसनी सें कहलकै
आदमी के रीढ़ में
भैर गेलै विष ऐत्ती कि
आबेॅ आदमियों भी साँपे नांखि
रंेगेॅ लागलै/टेढ़ोॅ-मेढ़ोॅ।