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छूटना एक शहर का / स्मिता सिन्हा
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छूटना
रिक्त होना होता है
शून्य तक
उन धुंधलाती स्मृतियों में...
छूटना
सहेजना होता है
पिछली सारी
चमकती सुबहों को
ढलती शामों को...
छूटना
इकठ्ठा करना होता है
सारे दस्तावेज़
उन तमाम बिखरे
विस्मृत अवशेषों में...
छूटना
गिनना होता है
पुराने रास्तों पर
चल चुके
सारे क़दमों को...
छूटना
बढ़ना होता है
फ़िर से
अपनी मंज़िल की ओर...
छूटना
शुरु करना होता है
एक नया सफ़र
नये सपनों के साथ...
छूटना
छोड़ना होता है
एक शहर को
या कि
तुम्हारा छूट जाना
वहीं उसी शहर में...