भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुझे पसंद थे तुम / स्मिता सिन्हा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:29, 23 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्मिता सिन्हा |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे पसंद था
लपकना
तुम्हारी छलकती हँसी
और देर तक खिलखिलाना
तुम्हारे संग
दौड़ना सरपट
उस पहाड़ी से
लुढ़कते सूरज के पीछे
तुम्हारा हाथ थामे
गिरते,सम्भलते
चुनना तितलियों की रंगीनीयाँ
और बिखेर देना
दूर तक आकाश में
ताकि बन सकें
कुछ और इंद्रधनुष

तुम्हें याद है
वो हमारी बेमतलब की जिद
ढूँढ़ना पत्ती पत्ती छाँव
उस चिलचिलाती धूप में भी
बाँधना नदी के दो छोरों को
कभी अलग नहीं होने के लिये
गिनना तारों को झुरमुट में
एक नये सिरे से
और कसकर पकड़ना
बारिश की बूँदों को
अपनी मुट्ठियों में

तुम्हारे साथ अक्सर
मैं हो जाती थी
अपनी उम्र से छोटी
पर पता नहीं क्यों
तुम्हें पसंद था
अपनी उम्र से बड़ा होना
मैं अब भी हर सुबह
सिलवटों में ढूंढ़ती हूँ तुमको
चूमती हूँ
उँगलियों की पोरों को
और बस मुस्कुरा देती हूँ
कि कभी इसने छुई थीं
तुम्हारी आँखों की कोर में
अटके गीलेपन को...