भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सभ्य काल / संजीव कुमार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:59, 23 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजीव कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सभ्यता के दिन हैं
शानदार हैं
कारे हैं कंप्यूटर हैं वायुयान हैं,
विचार हैं कथन हैं प्लान हैं,
सब है सब में मिला हुआ
सब है सब में घुला हुआ,
मजे के दिन हैं
जानदार हैं।

शान में बह रही है सभ्यता
शोखी और जोश में उतराती हुई,
जो गरीब हैं वो बस कुछ दिन के लिए
गरीब हैं,
जो रईस हैं वे रईस हैं सदा के लिए,
विश्वास हैं शाश्वत
कलेजे में धंसे हुए,
बेदखल करते हुए कलेजे के टुकड़ों को,
उठान पर है सभ्यता
तैयार और उत्साहित
पथ नियत है स्वर्गारोहण के लिए,
सहमत हैं
सभ्यता के पाण्डव
अनुगामी कुत्तों को भी साथ ले जाने के लिए,
हाजिर होंगे कुत्ते
इंद्र के दरबार में सुनने के लिए
संगीत शास्त्रबद्ध तथा ब्रह्मा का उपदेश।

सभ्यता के उत्थान से ही
रचा जायेगा स्वर्ग,
सभ्यता के दरबारियों की
जीवन्तता और ठिठोली में,
सभ्यता के छिटक गये अवशेषों के लिए
खोज ली जायेगी कोई जगह
कहीं न कहीं किसी पृष्ठ पर,
कोई करुण प्रहसन भी होगा,
रचित साहित्य के विवरणों में,
कुछ फीकापन भी होगा
प्रसंग परिवर्तन के लिए,
दुख और अभाव के कथोपकथन भी
किये जायेंगे सम्मिलित,
इस तरह बचा रखेगी वह
अपने व्यक्तित्व की पूर्णता को
जो उसके शानदार दिनों की तरह ही
रहने वाला है गंभीर और उदार,
आज के दिनों में सभ्यता बस
इस मत का सम्मान चाहती है।