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कविता लौटती है / स्वाति मेलकानी
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कविता लौटती है
जैसे लौटता है प्रेम
पहली बारिश में
भींगे पत्तों से बहकर आती
ठंडी हवा के साथ ।
कविता उगती है
जैसे उगते हैं सपने
रात्रि के विश्रान्त क्षणों में
किसी नन्हें बच्चे की
निश्छल आँखों
और दंतुरित मुस्कान के बीच।
कविता बढ़ती है
जैसे बढ़ता है जीवन
अलसाई धरती पर पड़ी
ओस की बूँदों से
सूर्य की प्रथम किरण के
प्रथम स्पर्श के साथ।
प्रेम जीवन और सपनों की तरह
कविता कभी नहीं सूखती।
रहती है आसपास
सुप्त स्त्रोतों की तरह
जिनके अचानक प्रकट होने पर
स्वयं धरती चकित हो जाती है