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तुम तो खैर खिलाड़ी ठहरे / स्वाति मेलकानी
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कच्चे पक्के शब्द कहीं से आ जाते हैं
छा जाते हैं
अंतराल में
जो है बीच तुम्हारे मेरे।
चुप रहने के लम्हों में
बातें होती हैं।
बातें जिनका
ओर-छोर तो क्या ही होगा
वे होती हैं कि
यह धरती थमी रहे बस।
ना पाने ना खोने का
यह खेल
बता दो कब तक होगा?
तुम तो खैर खिलाड़ी ठहरे
मुझको भी अब आदत ही है
बार-बार
यूँ हार-हार कर रह जाने की।