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उदासी में डूब जाता है / देवी नागरानी

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ख़्यालों ख़्वाब में ही महफिलें सजाता है|
और उसके बाद उदासी में डूब जाता है|


वो चाहता है के नज़्दीक रहूँ मैं उसके,
क़रीब जाऊँ तो फिर फ़ासले बढ़ाता है|


कुछ ऐसे भाए हैं रस्तों के पचोख़म उसको,
क़रीब जाके भी मंज़िल से लौट आता है|


किसी ज़ुबान के शब्दों से उसको नफ़रत है,
किसी के धर्म पे उँगली भी वो उठाता है|


वो रूठ जाता है यूँ भी कभी कभी मुझसे,
कभी कभी तो मिरे नाज़ भी उठाता है|