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माही / अविरल-अविराम / नारायण झा

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कच्छी कसि
चलि चुकल छथि
मलाह लोकनि
हियासि रहल छथि
धार-पोखरि, खत्ता -खुत्ती
चभच्चा आ डबरा दिस
लगैए माही केर समय
आबि चुकल।

ओ लोकनि
बंद कs देने छथि
जाहि पर माछ फौदायल
खोराकी फेकब
पुसटाय देनाइ
लगैए माही केर समय
आबि चुकल।

कान्ह पर बंशी लेने केयो
केयो गांज सs
लगबै छथि भांज अड़बैक
ठाम-ठीम टहुकी लगबैक
देखैत जोगार
केयो तियरि लगबै लेल
केयो टाएप सs छपै लेल
छथि तैयार
नब-नब जाल तैयार
बनाबटि तानी-भरनीक
एहेन जे
बझिये जाएत सभ रंगक माछ
लगैए माही केर समय
आबि चुकल।

एक-दोसरक जाल देखि
क' रहल छथि अपन जाल तैयार
महाजालो भs गेल तैयार
सभ अँखियाइस रहल छथि
एक-दोसरक जालफेक कला दिस
नहि बचि पाओत कोनो माछ
लगैए माही केर समय
आबि चुकल।