भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनसोहाँत / अविरल-अविराम / नारायण झा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:42, 29 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नारायण झा |अनुवादक= |संग्रह=अविरल-...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दृष्टिहीन जँ आँखि जचतै
कर्णहीन जँ कान जचतै
दिन अछैत अन्हार लगैए
कखन धरि ई बात पचतै!

दिशाहीन जँ दिशा देखेतै
कर्महीन जँ कर्म सिखेतै
देखलो बाट पहाड़ लगैए
कोना के एहेन बात छजतै!

बिनु पढ़ुआ जँ पाठ पढ़ेतै
फुसिक ढ़ाकी लेक्चर झाड़तै
पढ़लो पाठ बेकार लगैए
नेना कोनाके पाठ पढ़तै!

कठकोकाँड़ि जँ प्रेम पुनकेतै
घरघुसना अनुराग देखेतै
अनसोहांतक अम्बार लगैए
सत्य कतेक समाठ चुड़ेतै!

बेसुरा जँ संगीत सजेतै
नकभेमहा जँ गीत गओतै
अरदर आ कनफार लगैए
केना अकानल बाट धड़तै!

आन्हर- बहीर मालिक बनतै
नांगर लुल्ह मुख्तार कहेतै
नीको लोक गद्दार लगैए
कोना देशक पाग बचतै!