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सर में बाक़ी कहीं कुछ सनक दिखती है / भवेश दिलशाद
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सर में बाक़ी कहीं कुछ सनक दिखती है
अब भी ख़्वाबों में तेरी झलक दिखती है
जब पसीने में तर मैं तुझे देख लूँ
धूप में चाँदनी की चमक दिखती है
आस्मां जब हँसे दिखता है आधा चाँद
जब ज़मीं हँसती है इक धनक दिखती है
मैं लगातार गर देखता हूँ तुझे
तू मुझे देखती एकटक दिखती है
ओझल आँखों से हो कर भी तू ज़िंदगी
देर तक दिखती है दूर तक दिखती है