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इश्क़ इबादत - 4 / भवेश दिलशाद

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ये कितने मेज़ पे कागज़ पड़े हैं बिखरे हुए
कमीज़ नीचे बटन सोफ़े पर हैं टूटे हुए
रखा है फ़ोन के पास इक गुलाबी सा रूमाल
वो कल की रात तुम आई थीं या तुम्हारा ख़याल

रखे हैं बालकनी में गिलास खाली दो
निशानियां भी लबों की हैं प्यास वाली दो
पड़ा हुआ है अभी झूले पर बदामी शॉल
वो कल की रात तुम आई थीं या तुम्हारा ख़याल

ये देख प्यानो पे कॉफ़ी का मग रखा है अभी
सुरों पे औंधी अभी डायरी रखी है मेरी
गिरे हैं फ़र्श पे कुछ लफ़्ज़ और कुछेक सवाल
वो कल की रात तुम आई थीं या तुम्हारा ख़याल

ये तेरी चूड़ी के टुकड़े पड़े हैं बिस्तर पर
ये तेरे गजरे की कलियां पड़ी हैं चादर पर
सफ़ेद तकिये पे बिंदिया तेरी लगी है लाल
वो कल की रात तुम आई थीं या तुम्हारा ख़याल

कहाँ हो तुम ये कहाँ छोड़ कर गयी हो तुम
ये अपने कितने निशां छोड़ कर गयी हो तुम
जहाँ भी देख लूँ बस तुम ही तुम दिखायी दो
हरेक कोने से बस तुम ही तुम सुनायी दो
ऐ काश तेरी ये मौजूदगी रहे हरदम
ख़ुदा करे कि ये दीवानगी रहे हरदम
मैं जानता हूँ कि होगा ये दिल तरोताज़ा
अभी सुनूंगा इक आहट बजेगा दरवाज़ा
मैं क़श्मक़श में बहुत हूँ यही कहो फ़िलहाल
कि आज रात तुम आओगी या तुम्हारा ख़याल