भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सेंध / लालसिंह दिल / सत्यपाल सहगल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:16, 12 सितम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लालसिंह दिल |अनुवादक=सत्यपाल सहग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रात-दिन चोर मिलते हैं
विश्वास को सेंध लगाते हैं
और किसी अकेले मोड़ पर
रौब गाँठना चाहते हैं।
दूसरे मोड़ पर वे नाचते हैं।
अगर फिर भी कामयाब नहीं होते
अगले मोड़ पर भिखारी बनकर
विश्वास की भीख माँगते हैं।
और
उससे अगले मोड़ पर
वे हँसते हैं
इन विश्वास गँवाने वालों पर।
मूल पंजाबी से अनुवाद : सत्यपाल सहगल