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भीड़ भरे बाज़ारों में / अश्वघोष
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भीड़ भरे इन बाजारों में
दुविधाओं के अंबारों में
खुद ही खुद को
खोज रहे हम।
लिए उसूलों की इक गठरी
छोड़ी नहीं अभी तक पटरी
छूटे नहीं अभी तक हमसे
पहले वाले,
वे सब क्रम।
संबंधों ने वचन नकारे
छीज रहे हैं अनुभव सारे
मृगजल की लहरों पर लहरें
चारों ओर
उगे हैं विभ्रम।
चले जा रहे जगते-सोते
बंजर में हरियाली बोते
डर लगता है व्यर्थ न जाए
आगत की राहों पर
यह श्रम।