भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रानियों का हाल / लालसिंह दिल / सत्यपाल सहगल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:48, 12 सितम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लालसिंह दिल |अनुवादक=सत्यपाल सहग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कुछ ने अपनी
जान गँवाई
कुछ ने गोबर कूड़े।
खुले बाल
औ' नंगे पैरों
छूटे लाल पंघूड़े*।
- पंघूड़ा — बच्चों को सुलाने के लिए सजा हुआ आरामदायक झूला।
मूल पंजाबी से अनुवाद : सत्यपाल सहगल